ये लिखते हुवे सुकून और हर्ष हो रहा की इस अंग्रेजी नववर्ष के हिन्जडाई और फूहड़ अंत पर और उस से पहले के दो चार दिनों में ने तो मेने किसी शुभ कामनाये आगे हो के दी और ना ही मेरे पास कोई ज्यादा आयी |हाँ किसी ने दी तो विश कर दिया |ना मीडिया में , ना शहरो में ऐसा माहोल दिखा की नया साल किसी होटल या रेस्तरो में जा के नहीं मनायंगे तो साल भर घुटनों में माथा घाल के बेठे रहेंगे |ये परिवर्तित स्थिति भारतीय समाज के वापस जड़ो की और लोटते हुवे परिदर्श्य की की हे |आज के दो तीन साल पहले इस काम चलाऊ काम काजी नए साल के बहाने सामान्य भारतीय हुडदंग बाजी ,वाइन व् मीट पार्टिया ,और वेश्यावर्ती हुवा करती थी उस में बिलकुल कमी आई हे इस साल |
धन्यवाद हे केंद्र की यु. पी. ए सरकार का भी जिसने सामान्य समाज की कमर इस तरह तोड़ी हे की वो किसी इस प्रकार की बदमाशी के लायक ही ना रहे |ये एक कारण हो सकता हे लेकिन मुख्य तथ्य भारतीय अधिकतर समान्य युवा अपनी हिन्दू सन्सक्रती की और लोट रहा हे |आज सोसिअल नेटवर्किंग साइटों पर अधिकतर युवा प्रोफाइलो को देख के आशा जगती हे की युवा वर्ग अपनी संसकर्तिक और रास्ट्रीय पहचान की और लोट रहा हे| ये स्थिति इतनी तेजी से बदलेगी की कोई भी अनुमान नहीं लगा पायेगा |आपको पता हो इस दशक के शुरूआती दोर से थोडा पहले से शादी ब्य्यावो में गिद्द पद्दति "'खड़े खाने"' का सिस्टम शुरू हुआ था धीरे धीरे गाँव खेडो वालो ने भी इस तरह की चोंचले बाजी शुरू कर दी थी ,इन एक दो सालो में हम उसका गिद्द पद्दति का हश्र हम देख रहे हे ?आज कल पुन पंगत और बाजोट सिस्टम चल पड़े हे |ये हाल काम चलाऊ अंग्रेजी नए साल के जश्न का था उस समय ,लेकिन इस साल सामान्य भारतीय समाज ने इस फूहड़पन को नकारने की शुरुआत कर दी हे हाँ दो नम्बरी और दलाल टाइप और भ्रसटाखोरो जेसे अंध पेसे वाले लोगो को तो इस दिन केवल नग्न नर्त्य खुल के करने का मोका मिल जाता हे |
अंग्रेजी साल केवल हमें सामान्य कामकाज में व्यवस्थित कर सकती हे ,लेकिन हमारी संसक्रती नहीं बन सकती ,हमारी सामाजिक धार्मिक रीती रिवाजो ,संस्कारो की वाहक नहीं बन सकती |ज्यादा से ज्यादा महीने का दूध के हिसाब किताब रखने से सहायक ज्यादा कुछ नहीं और सरकार का मार्च में बजट बनाने में ?ये रितुवो के हिसाब से भी तर्क संगत नहीं कोई भी तीज त्यौहार का इसमें भी इसमें कोई मतलब नहीं |ये अंग्रेजी साल सभ्यताए बना सकता हे संस्कर्तिया नहीं जबकि भारतीय विक्रम समन्वत सभ्यता और संस्क्रती दोनों का वाहक हे सेकड़ो नही हजारो वर्षो से |
फिर क्यों पिछले दो दशको से पश्चीम के मोतिया बिन्द गर्सित हो के २५ दिसम्बर से ही टेटाने लगे और ३१ इस्म्बेर की रात हिस्टीरिया के रोगी बन जाते |पिछले साल हमारे अजमेर में एक शख्स को अंग्रेजी नए साल का ऐसा दोरा पड़ा की अपने स्क्टूर को शहर की सडको पे न्डंग धडंग ही दोडा दिया और काफी देर तक दोड़ता रहा ,शहर पुलिस ने बड़ी मुश्किल से काबू किया |अपना नव वर्ष चेत्र शुक्ल की एकम का होता हे जब माँ भवानी जगदम्बे की स्थापना की जाती हे और बड़े ही उल्लासित वातावरण में नए साल का शुभारम्भ होता हे |
वन्देमातरम
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अंग्रेज लोग जो गंदगी फ़ैला गये हैं, उसे साफ़ करने में वक्त लगेगा…
ReplyDeleteअब वे लोग कान्वेंट के जरिये दिमाग में गन्दगी भर रहे हैं…
फिलहाल तो नववर्ष की पूर्व रात्रि में सभी प्रकार की वर्जनाओं का खुलकर प्रदर्शन ही चल रहा है ।
ReplyDeleteआपके लेख से अपनी संस्कृति की ओर लौटते भारतीय समाज की सूचना मिली , अच्छा लगा , आनंद मिला ।
ReplyDeleteलेकिन दूसरी ओर रचना बहन जी और बहन दिव्या जी जैसी राष्ट्रवादिनियां भारतीय मूल्यों बहन प्रहार भी कर रही हैं मां और बहन के पवित्र संबोधन को अस्वीकार-तिरस्कार करके।
कृपया देखिये कि बहन कहने पर भी अब ऐतराज कर रही हैं देश में पलने और विदेश में बढ़ने वाली मेरी देशबाला बहन दिव्या जी इस लिंक पर
http://ahsaskiparten.blogspot.com
2. मान जी ! आपके साहस से प्रेरणा लेकर इन्हें आत्मिक बल अर्जित करना चाहिए न कि आप जैसे प्रबुद्ध लोगों के आत्म बल और ऊर्जा को ऐसे लोगों की सेवा में लगाकर बेकार करना चाहिए जिनका चरित्र कांग्रेसी नेताओं से किसी तरह कम नहीं है बल्कि अधिक ही गिरा हुआ है ।
ये लोग अंग्रेज़ियत के ख़िलाफ़ बोलकर राष्ट्रवादी बनते हैं लेकिन ठीक उसी समय ये आपको अंग्रेज़ी ड्रेस में नज़र आएंगे । ये लोग राष्ट्रवाद के नाम पर भावनाएं भड़काते हैं और लोगों से चंदा उगाही करते हैं । वेद पुराणों की बात को ठीक वैसे ही बकवास बताते हैं जैसे कि अंग्रेज़ बल्कि अंग्रेज़ तो बहुत से ऐसे हैं कि पुराणों की कथा पर विश्वास करते हैं और मैं ख़ुद भी उनकी बहुत सी बातों को सत्य मानता हूं ।
गुमराह करने वाले ऐसे लोग आपके दोस्त हैं या दुश्मन ?
भारतीय संस्कृति के रक्षक हैं या नष्टक ?
आप अपने ही किसी धार्मिक गुरू से कन्फ़र्म कर लें ।
@ सुरेश जी ! आपकी भावनाओं का स्वागत है ।
प्रूफ़ संशोधन :
ReplyDeleteआपके लेख से अपनी संस्कृति की ओर लौटते भारतीय समाज की सूचना मिली , अच्छा लगा , आनंद मिला ।
लेकिन दूसरी ओर रचना बहन जी और बहन दिव्या जी जैसी राष्ट्रवादिनियां भारतीय मूल्यों पर प्रहार भी कर रही हैं मां और बहन के पवित्र संबोधन को अस्वीकार-तिरस्कार करके।
कृपया देखिये कि बहन कहने पर भी अब ऐतराज कर रही हैं देश में पलने और विदेश में बढ़ने वाली मेरी देशबाला बहन दिव्या जी इस लिंक पर
http://ahsaskiparten.blogspot.com
2. मान जी ! आपके साहस से प्रेरणा लेकर इन्हें आत्मिक बल अर्जित करना चाहिए न कि आप जैसे प्रबुद्ध लोगों के आत्म बल और ऊर्जा को ऐसे लोगों की सेवा में लगाकर बेकार करना चाहिए जिनका चरित्र कांग्रेसी नेताओं से किसी भी तरह कम नहीं है बल्कि अधिक ही गिरा हुआ है ।
ये लोग अंग्रेज़ियत के ख़िलाफ़ बोलकर राष्ट्रवादी बनते हैं लेकिन ठीक उसी समय ये आपको अंग्रेज़ी ड्रेस में नज़र आएंगे । ये लोग राष्ट्रवाद के नाम पर भावनाएं भड़काते हैं और लोगों से चंदा उगाही करते हैं । वेद पुराणों की बात को ठीक वैसे ही बकवास बताते हैं जैसे कि अंग्रेज़ बल्कि अंग्रेज़ तो बहुत से ऐसे हैं कि पुराणों की कथा पर विश्वास करते हैं और मैं ख़ुद भी उनकी बहुत सी बातों को सत्य मानता हूं ।
गुमराह करने वाले ऐसे लोग आपके दोस्त हैं या दुश्मन ?
भारतीय संस्कृति के रक्षक हैं या नष्टक ?
आप अपने ही किसी धार्मिक गुरू से कन्फ़र्म कर लें ।
@ सुशील जी ! आपकी भावनाओं का स्वागत है ।
आप सभी को नया साल मुबारक हो ।
परम पावन प्रभु आपको अपने आप तक पहुंचने के लिए वह नित नूतन मार्ग दिखाए जो कि सनातन भी है और मंगलका री भी ।
जिस तरह से आप लोग टिप्पणी देने में आज ऊपर हैं ऐसे आप ऊपर वाले की तारीफ़ लिखने में भी ऊपर ही हो जाएं , मुझसे , सबसे ।
सादर !
आदरणीय ,सुरेश जी सर , सर सुशील जी बाकलीवाल ,डॉ.अनवर जमाल साहब ,आप सभी का ब्लॉग पर पधारने का धन्यवाद और आप का आशीष |
ReplyDelete#
ReplyDelete@ भाई मान जी ! आपका अभिवादन सादर स्वीकार है।
वंदे ईश्वरम् !
जय श्री अनंत राम !!
मैंने दो नए ब्लाग बनाए हैं। आप इन्हें देखकर टिप्पणी करेंगे तो यह सच में यादगार बन जाएंगे।
1- प्यारी मां
2- कमेंट्स गार्डन