Wednesday, December 29, 2010

इमानदार मजबूर गुलाम और मजबूत मालकिन

ऐसा लिखना तो नहीं चाहिए लेकिन आपको पता हो तो जवान बछड़े को क्रषी कार्य में जोतने से पहले "'भादी"'(श्याणा ) किया जाता हे उसके बाद वो बेल कहलाता हे ,फिर उसका मालिक उम्र भर उसे भाता(काम में लेना) रह्ता हे |भादी इस लिए किया जाता हे की वो सांड की जेसे बदमाशी ना कर सके और चुपचाप गुलामी दल दल में अपने खुराए गला दे ,अब भादी किस तरह किया जाता हे ये सभी जानते यंहा वर्णन उचित नहीं ?



कुछ इस तरह की स्थिति ७ साल पहले विशव के सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे शक्तिशाली पद पर आसमानी पेराट्रूपर देवता की तरह टपकाए गए हमारे "'प्रधान " मंत्री मनमोहन सिंह की हे ,बिना कोई चुनाव जीते |अब ये जन्मजात भादी हे या बाद में किये गए इसके बारे में कोई कुछ नहीं कह सकता हे |26 September १९३२ में जन्मे डॉ मान मोहन सिंह को भी उम्मीद नहीं थी की रास्ट्र के इस सबसे शक्ति शाली लेकिन वर्तमानिक गुलामाई पद की जिमेदारी ७ वे परधान मंत्री के में २२ मई २००४ को लेनी पड़ेगी |९१९१ में पी.वी नरसिम्हा राव की सरकार में एक कुशल वितमंत्री एंव आर्थिक उदारी करण के अग्रणी एक दिन जूडे में जूत के भर्स्ट एवं बेईमान मंत्रिमंडल का बोझ एक श्याने बैल की तरह चुपचाप बहते जायेंगे किसी ने भी नहीं सोचा होगा ?त्याग मूर्ती के हाई वोल्टेज ड्रामे के बाद सवेधानिक व् व्यहवार में रास्ट्र के सबसे शक्तिशाली पद को मनमोहन सिंह को सोप के जिस प्रकार पंगु बनाया वेसा उदाहरन स्वतंत्र भारत के इतिहास में कभी नहीं हुआ |

तथा कथित त्याग मूर्ती ने बड़ी चतुराई से पासा फेंकते हुवे वो खेल खेला जिस से भारत की भोली जनता झासे में गयी और भांड मीडिया भी शहनाई नंगाड़े ले कर बेठ गया दस जनपथ के बाहर | त्यागमूर्ती ने यु.पी. अध्य्कस्ता पर कब्ज़ा बरकरार रखते हुवे श्याणे मन जी के लिए चाबुक अपने हाथ में रखा |एक तो सत्ता की जिम्मेद्दारी और आरोप प्रत्यारोपो से मुप्त लेकिन अधिकार ऐसे की इनकी अनुमति बिना पत्ता भी ना खड़क सके |क्या शानदार राजनेतिक चाल ?मन मोहन सिंह ९१९१ से पहले इकोनोमिक फॉर्म के अध्यक्स बतोर अछा काम किया था वो परदे के पीछे के चुपचाप रहकर काम करने वालो में से थे ,तो क्या बला आन पडी थी की पर्वण मुखर्जी जेसे वरिष्ठ घाघ नेता के रहते हुवे त्यागमूर्ति को इन मोहदय को इतने बड़े jइमेदारी sopi ?सीधी सी बात हे इन्हें देश के लिए प्रधान मंत्री थोड़े ही चाहिए था एक श्याणा बैल चाहिए था जो केवल बहता रहे और संटर खाता रहे |

यु.पी. की दूसरी पारी में तो हद ही हो गयी जब बाबूजी की नाक के नीचे हजारो खरबों जीम लिए गए लेकिन उफ़ तक ना निकली बल्कि कमर तोडू मंहगाई पर उनके मंत्री बेशर्मी और नंगई पे उतर आये तब भी मालकिन के हंटर का इंतजार था |ये क्या घाल मेल हे देश की जनता समझ नहीं पा रही ?देश को दिखने तो ये बाबूजी चला रहे लेकिन केवल और केवल दिखने में |इसे यों कहे तो की सत्ता का शीर्ष के पास जिम्मेदारी कुछ नहीं लेकिन अधिकार पूरे हे |बाबूजी तो केवल श्याने बैल हे |

3 comments:

  1. पहले कभी ज्ञानी जेलसिंह भी तो इन्दिरा गांधी के ऐसे ही श्याने बैल थे ।

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  2. या कांग्रेसी हे जो अपना हरामी पना यंहा दिखा रहा हे देख ले
    http://jaishariram-man.blogspot.com/2010/12/blog-post_05.html

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  3. .

    नाक के नीचे हो रही धांधलेबाजी पर प्रधानमन्त्री की चुप्पी अत्यंत अशोभनीय है। उन्हें अपने पद की गरिमा का भान होना चाहिए।

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